सुदामा कृष्ण का मिलन
Shivani
देख दृश्य द्वारिका का देव हर्षाये हैं,
कृष्ण से मिलने आज सुदामा आये हैं।
सोच रहें क्या कृष्ण उन्हें पहचानेंगे
वो हैं उनके बाल सखा क्या मानेंगे,
वस्त्र पुराने, नंगे पांव, देख सकुचाये हैं
कृष्ण से मिलने आज सुदामा आये हैं।
खड़े द्वारपालों से विनती करते हैं
मोहन संग मिलने को वो कब से तरसते हैं,
सेवक सुन कर विनय, संदेश पठाये हैं
कृष्ण से मिलने आज सुदामा आये हैं।
बचपन की बातें कर दोनों मुस्कुराते हैं
क्या होती है मित्रता सबको बतलाते हैं,
दोनों के किस्से आज जहाँ ये गाये है
कृष्ण से मिलने आज सुदामा आये हैं।
सेवक के मुख से सुनकर, सुदामा का आगमन
भाव विभोर हुए मोहन, झट छोड़ दिया आसन,
खोकर सुध-बुध अपनी द्वार दौड़े आये हैं
कृष्ण से मिलने आज सुदामा आये हैं।
गले मिले ऐसे, जैसे बिछड़े मिले हों प्राण
ये व्यवहार देखकर, सब हो गए थे हैरान
संग लेजाकर उनको आसन पर बिठाए हैं
कृष्ण से मिलने आज सुदामा आये हैं।
पूछ रहे हैं मोहन तुम अब तक क्यों न आये
मिलकर तुमसे हाल है जो मुझसे कहा न जाये,
नैनों के नीर से प्रभु ने चरण धुलाये हैं
कृष्ण से मिलने आज सुदामा आये हैं।
देख दृश्य द्वारिका का देव हर्षाये हैं,
कृष्ण से मिलने आज सुदामा आये हैं।
तुझसे ही जाना मैंने, खुदा को ही याद करना
तूने सिखाया मुझे, खुद को ही बर्बाद करना
गलती थी मेरी मैंने मान लिया खुदा तुझे,
मान लिया खुदा को ही फरियादों में याद करना
सपनों में भी तुझे पाने की चाह थी
लोगो ने कहा था कि गलत मेरी राह थी
भूल तो गया मैं उस तेरी चार दीवारी को
जहां की खुदा तू और तू मेरी फरियाद थी
हम बच्चे है हम मासूम है
Mirza Y S Baig
वो सपनों के राजा वो सपनों की रानी
वो मेरी रूह की ताकत, वो मेरी फूल सी कली
वो मेरे आँखों के तारे, वो दिलकश नज़ारे
कहा करते थे ऐसे ही माँ बाप हमारे..
पर क्या कहूँ..
मेरा घर टूट चुका है.. मेरा सब कुछ लुट चुका है..
पता हमें भी न था, न उन्हें थी खबर..
कब ये प्यार भरी अल्फ़ाज़ लहू के सन्नाटे में बदल जाएंगे..
कब हमारे माँ बाप हमसे ही बिछड़ जाएंगे..
हम बच्चे हैं, हम मासूम हैं..
फिर भी..
क्यों आपने फँसाया हमें अपनी सियासत के ढंग में..
क्यों उतारा हमें मैदान-ए-जंग में..
हम बच्चे हैं, हम मासूम..
फिर भी क्यों बनाया निशाना हममें..
हम बच्चे हैं, हम मासूम हैं..
हमारी तरह और कितने ही मासूम हैं..
हमने क्या जुर्म कर दिया बता दीजिए..
हमें अनाथ क्यों कर दिया बता दीजिए..
हम बच्चे हैं, हम मासूम हैं..
अब हम अपने प्यास को बुझाएं कैसे..
दो वक्त की रोटी कमाएं कैसे..
रहने का ठिकाना बनाएं कैसे..
कफ़न में लिपटे, खून से सने..
हम अपनों को गले लगाएं कैसे..
अपने दर्द-ए-दिल की धड़कन को सुनाएं कैसे..
अपने रूह की फ़रियाद को बताएं कैसे..
हमारे लिए तो सब कुछ लुट चुका है..
जीने की चाहत है पर आशियाना टूट चुका है..
पढ़ने की ख़्वाहिश है पर बस्ता छूट चुका है..
हमारे लिए तो सब कुछ लुट चुका है..
बना बैठे हैं कुछ राहत की उम्मीदें..
हर साल करते हैं इस दुनिया से कुछ मिन्नतें..
ख़त्म करो इस जंग-ए-दुनिया के तकरार को..
अब हमें अपनाने का इकरार करो..
हम बच्चे हैं, हम मासूम..
ये कुछ ख़्वाब हमारे भी हैं..
ये कुछ ख़्वाब हमारे भी हैं..
पर..
ख़्वाबों की दुनिया मुकम्मल कहाँ है..
जीने की ख़्वाहिश में मरना यहाँ है..
यूँ कस के हाथ थामें रखना,
कि मैं लड़खड़ाता बहुत हूँ,
खुद ही पूछ लेना हाल मेरा,
क्योंकि मैं तुमसे छुपाता बहुत हूँ।
दिल की किताबें खोलकर देखो,
उनमें छिपी उदासी बहुत है,
जानते हो ना,
भंवर समंदर छुपाए,
मैं मुस्कुराता बहुत हूँ।
रात की चुप्पी में अक्सर,
मैं खुद से बातें करता बहुत हूँ।
ख्वाबों के रंगीन पन्नों पर,
कभी-कभी स्याही फैल जाती है,
आँखों में छिपी उन कहानियों को,
मैं आँखों से सुनाता बहुत हूँ।
सूरज की किरणों में खोकर,
छाँव की तलाश करता हूँ,
हर मुस्कान के पीछे,
एक आँसू छुपाता बहुत हूँ।
दर्द के दरिया में तैरते,
खुशियों की नाव बनाता हूँ,
जिंदगी की इस राह पर,
मैं मुस्कुराता बहुत हूँ।
तुम्हारे साथ बिताए लम्हों को,
यादों की बुनाई में बुनता हूँ,
हर दर्द को सीने में दबाकर,
मैं हंसता और हंसाता बहुत हूँ।
तुम न मेरी थी, न हो और शायद न होगी,
ये हकीकत जान कर भी मैं हर दफ्फा मुकर जाऊँगा
तुम्हारी आदते आज भी जिंदा है मुझमें,
इन आदतों के सहारे शायद मैं थोड़ा और निखर जाऊँगा
इन पंक्तियों में मैंने तुमको पिरोया है ,
भला इन पंक्तियों में मैं पूर्ण विराम कैसे लगा पाऊँगा